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    ‘अंग्रेज़ी बांध नहीं, पुल है, शर्म नहीं, शक्ति है’, राहुल गांधी का अमित शाह को जवाब

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर गृह मंत्री अमित शाह पर पलटवार करते हुए कहा है कि ‘अंग्रेजी कोई बांध या बाधा नहीं, बल्कि एक पुल है’ और ‘यह शर्म का नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक है’। अंग्रेज़ी ज़ंजीर नहीं – ज़ंजीरें तोड़ने का औज़ार है। BJP-RSS नहीं चाहते कि भारत का ग़रीब बच्चा अंग्रेज़ी सीखे, क्योंकि वो नहीं चाहते कि आप सवाल पूछें, आगे बढ़ें, बराबरी करें। आज की दुनिया में, अंग्रेज़ी उतनी ही ज़रूरी है जितनी आपकी मातृभाषा – क्योंकि यही रोज़गार दिलाएगी, आत्मविश्वास बढ़ाएगी। भारत की हर भाषा में आत्मा है, संस्कृति है, ज्ञान है। हमें उन्हें संजोना है और साथ ही हर बच्चे को अंग्रेज़ी सिखानी है। यही रास्ता है एक ऐसे भारत का, जो दुनिया से मुकाबला करे, जो हर बच्चे को बराबरी का मौका दे। राहुल गांधी का यह बयान अमित शाह के उस हालिया बयान के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने संभवतः अंग्रेजी भाषा को लेकर परोक्ष रूप से टिप्पणी की थी।

    विदेशों में भी दरवाजे खोलने में मदद करती है

    राहुल गांधी ने कहा, “कुछ लोग कहते हैं कि अंग्रेजी नहीं बोलनी चाहिए। मैं उनसे पूछना चाहता हूं, क्या आप दुनिया से कट जाना चाहते हैं? अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है। यह आपको दुनिया भर के लोगों से जुड़ने, ज्ञान प्राप्त करने और नए अवसर पैदा करने में मदद करती है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि अंग्रेजी भाषा किसी की ‘शर्म’ नहीं, बल्कि ‘शक्ति’ का स्रोत है। राहुल गांधी ने आगे कहा, “अंग्रेजी हमें केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी दरवाजे खोलने में मदद करती है। अगर हमारे युवा अंग्रेजी जानते हैं, तो वे वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, बेहतर रोजगार पा सकते हैं और देश का नाम रोशन कर सकते हैं।” उन्होंने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे भाषा के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस सभी भाषाओं का सम्मान करती है।

    भाषा को लेकर राजनीतिक बहस और तेज होने की उम्मीद

    राहुल गांधी ने भाषा के मुद्दे पर भाजपा और विशेषकर अमित शाह पर हमला बोला है। पहले भी वे हिंदी को थोपने और अन्य भारतीय भाषाओं को कमतर आंकने के आरोपों को लेकर भाजपा की आलोचना करते रहे हैं। राहुल गांधी के इस बयान को कांग्रेस की ओर से एक समावेशी और आधुनिक भारत की छवि पेश करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इस बयान से आने वाले दिनों में भाषा को लेकर राजनीतिक बहस और तेज होने की उम्मीद है।

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