अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों ने भारत में विदेश नीति के गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। विशेष रूप से पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल सैयद असीम मुनीर की अमेरिका यात्रा और वहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी मुलाकात ने कई सवालों को जन्म दिया है कि क्या अमेरिका एक बार फिर पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देख रहा है, और इसका भारत के लिए क्या अर्थ है। संक्षेप में पाकिस्तान और अमेरिका की बढ़ती नजदीकी भारत के लिए एक चुनौती हो सकती है, लेकिन यह भारत को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित करने और एक अधिक मजबूत व बहुआयामी विदेश नीति बनाने का अवसर भी प्रदान करती है।
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की इस ‘नयाजदीकी’ के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- ईरान-इजरायल तनाव: मध्य पूर्व में जारी तनाव के मद्देनजर, अमेरिका पाकिस्तान को एक रणनीतिक भागीदार के रूप में देख रहा है, जो ईरान से निपटने में सहायक हो सकता है। पाकिस्तान ने ईरान के साथ कुछ हवाई और जमीनी मार्ग बंद किए हैं, जो अमेरिका के हित में है।
- चीन का मुकाबला: अमेरिका चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को कम करने के लिए पाकिस्तान को अपने प्रभाव क्षेत्र में वापस लाने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि पाकिस्तान चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- क्षेत्रीय स्थिरता: अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच स्थिरता चाहता है। ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने हाल ही में (मई 2025 में) भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय सैन्य संघर्ष को रोकने में मदद की थी, हालांकि भारत ने इस दावे को खारिज किया है।
भारत के लिए निहितार्थ:
भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को पाकिस्तान के चश्मे से नहीं देखता है। हालांकि, अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति नरम रुख भारत के लिए कुछ चिंताएं पैदा कर सकता है:
- आतंकवाद पर रुख: अगर अमेरिका पाकिस्तान को एक प्रमुख सहयोगी मानता है, तो सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर उसका रुख नरम पड़ सकता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय होगा।
- रक्षा सहयोग: हालांकि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध काफी मजबूत हुए हैं, पाकिस्तान को फिर से सैन्य सहायता मिलने से क्षेत्र में हथियारों की होड़ बढ़ सकती है।
- कूटनीतिक संतुलन: भारत को अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को और सावधानी से संतुलित करना पड़ सकता है, ताकि वह अपने रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रख सके।
क्या भारत को विदेश नीति बदलने की जरूरत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी विदेश नीति में मौलिक बदलाव की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उसे अधिक लचीलापन और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा:
- आत्मनिर्भरता पर जोर: रक्षा और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- बहु-ध्रुवीयता को बढ़ावा: अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों को जारी रखते हुए, यूरोपीय संघ, रूस, जापान और मध्य पूर्व के देशों के साथ संबंधों को और गहरा करना।
- पड़ोसी देशों से संबंध: पाकिस्तान के साथ तनाव के बावजूद, सार्क (SAARC) जैसे क्षेत्रीय मंचों पर सक्रियता बनाए रखना।