बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है, जहां अध्यक्ष फारूक अहमद को पद से बेइज्जत करके हटा दिया गया है। यह घटनाक्रम तब सामने आया जब नेशनल स्पोट्र्स काउंसिल (एनएससी) ने फारूक अहमद को अध्यक्ष पद से हटा दिया। यह कदम बोर्ड के भीतर बढ़ते दबाव और आंतरिक मतभेदों के बाद उठाया गया है। बीसीबी के 10 में से 8 निदेशकों ने युवा एवं खेल मंत्रालय को एक औपचारिक अविश्वास पत्र सौंपा था, जिसमें फारूक अहमद को तत्काल हटाने की मांग की गई थी। इस पत्र में निदेशकों ने आरोप लगाया था कि फारूक अहमद लगातार बोर्ड के सदस्यों को दरकिनार कर रहे थे और प्रमुख प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में बीसीबी संविधान का उल्लंघन कर रहे थे। इसके साथ ही, बांग्लादेश प्रीमियर लीग (बीपीएल) से संबंधित एक तथ्य-खोज समिति की रिपोर्ट भी इस फैसले का आधार बनी। नेशनल स्पोट्र्स काउंसिल ने अपने अधिनियम के तहत यह कार्रवाई की और एक बयान में कहा कि 8 बीसीबी निदेशकों द्वारा फारूक अहमद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भेजा गया था।
यह हैं आरोप और विवाद
निदेशकों ने फारूक अहमद पर एक निरंकुश नेता होने, नियमित रूप से संवैधानिक उल्लंघनों, वित्तीय कुप्रबंधन और विवादास्पद व्यक्तियों से संबंध रखने का भी आरोप लगाया। इन आरोपों में यह भी शामिल है कि फारूक ने एकतरफा प्रमुख निर्णय लिए, जिसमें सबसे प्रमुख मुख्य कोच चंडिका हाथुरूसिंघा की हाल ही में बर्खास्तगी थी। उनका दावा है कि यह कार्रवाई बीसीबी संविधान के खंड 14 (बी का उल्लंघन है, जिसमें ऐसे निर्णयों के लिए बोर्ड की मंजूरी अनिवार्य है। निदेशकों ने आगे आरोप लगाया कि फारूक ने प्रभावी रूप से बोर्ड पर नियंत्रण कर लिया था, सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया और राष्ट्रीय टीम के मामलों और घरेलू क्रिकेट दोनों में डर, भाई-भतीजावाद और अनुचित हस्तक्षेप का माहौल बना दिया। जब यह बात सार्वजनिक हुई कि बोर्ड के 10 में से 8 निदेशकों ने उनके खिलाफ अविश्वास व्यक्त किया है, तो फारूक अहमद ने शुरू में इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था। हालांकि सरकार के सीधे हस्तक्षेप के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया।
भविष्य और क्या पड़ेगा प्रभाव
फारूक अहमद ने नौ महीने से कुछ अधिक समय तक अध्यक्ष का पद संभाला था। उनके हटने के बाद, पूर्व बांग्लादेशी कप्तान अमीनुल इस्लाम को बीसीबी अध्यक्ष के रूप में फारूक अहमद का उत्तराधिकारी बनाने की संभावना है। यह घटना बांग्लादेश क्रिकेट प्रशासन में एक नाटकीय बदलाव को दर्शाती है और देश के प्रमुख क्रिकेट निकाय के भीतर व्यापक शासन संबंधी चिंताओं और राजनीतिक प्रभाव को उजागर करती है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के नियमों के अनुसार, सरकारी हस्तक्षेप को लेकर इस तरह के कदम पर आईसीसी की संभावित प्रतिक्रिया भी भविष्य में देखने लायक होगी, क्योंकि आईसीसी ने अतीत में ऐसे मामलों में श्रीलंका और जिम्बाब्वे जैसे क्रिकेट बोर्डों को निलंबित किया है।