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    बांग्लादेश-चीन की चाल का दिया जवाब, भारत ने एक्टिवेट किया कैलाशहर एयरपोर्ट

    बांग्लादेश और चीन के बीच लालमोनिरहाट एयरबेस को पुनर्जीवित करने की योजना ने भारत की रणनीतिक चिंताओं को बढ़ा दिया है। यह एयरबेस भारतीय सीमा से सिर्फ 12-15 किलोमीटर दूर बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में स्थित है, और सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) से लगभग 135 किलोमीटर दूर है, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्ग है। इसके जवाब में भारत ने त्रिपुरा के कैलाशहर एयरपोर्ट को फिर से सक्रिय करने का काम तेज कर दिया है, जिसे 1971 के भारत-पाक युद्ध में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता था।

    चीन-बांग्लादेश का लालमोनिरहाट दांव

    लालमोनिरहाट एयरबेस द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। चीनी अधिकारी हाल ही में इस स्थल का दौरा कर चुके हैं और बांग्लादेश सरकार इसके पुनरुद्धार के लिए बीजिंग से मदद मांग रही है। चीनी दखल भारत के लिए चिंता का सबब है क्योंकि सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के मुख्य भूभाग को उसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। यह कॉरिडोर सिर्फ 20-22 किलोमीटर चौड़ा है, जिससे किसी भी संभावित चीनी गतिविधि से भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के चीन दौरे और उनके बयानों ने इस मसले को और गरमा दिया है।

    भारत का जवाब, कैलाशहर एयरपोर्ट की सक्रियता

    इस चीनी-बांग्लादेशी गठजोड़ का मुकाबला करने के लिए भारत ने त्रिपुरा के ऊनाकोटी जिले में स्थित कैलाशहर एयरपोर्ट को सक्रिय करने की तैयारी तेज कर दी है। यह एयरपोर्ट पिछले करीब तीन दशक से बंद पड़ा है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की टीम ने हाल ही में साइट का दौरा कर मौजूदा हालात का जायजा लिया है।

    यह है रणनीतिक महत्व

    कैलाशहर एयरपोर्ट का रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, इस एयरपोर्ट ने भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना को दो हिस्सों में बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे बांग्लादेश का निर्माण संभव हुआ। इस एयरपोर्ट से न केवल वाणिज्यिक उड़ानों को फायदा मिलने की उम्मीद है, बल्कि यह आपातकालीन या संकट के समय भारतीय वायुसेना के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। रिपोट्र्स के अनुसार, पूर्वोत्तर के हवाई अड्डों को दोहरे इस्तेमाल के लिए बनाया जा रहा है, यानी वे जरूरत पडऩे पर सैन्य उपयोग में भी आ सकेंगे। यह कदम चीन और बांग्लादेश की बढ़ती गतिविधियों के बीच भारत की रणनीतिक तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।

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