पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ते जा रहा है। अब खबर है कि पाकिस्तान ताशकंद समझौते से पीछे हटने की तैयारी में है। इससे पहले पाकिस्तान ने शिमला समझौते को भी निलंबित कर दिया था। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ताशकंद समझौते से पाकिस्तान का निकलना प्रतीकात्मक अधिक होगा, क्योंकि यह समझौता पहले से ही कई बार कमजोर हुआ है। हालांकि यह निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ाएगा।
क्या है ताशकंद समझौता?
ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 10 जनवरी, 1966 को तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद शहर में हुआ था। इस समझौते पर भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसी के बाद ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया था। इस समझौते का उद्देश्य 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करना और दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना था। दोनों देश अपनी सेनाओं को 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में वापस बुला लेंगे। आपसी संबंधों को सामान्य बनाने और शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का समाधान करने का प्रयास करेंगे। दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। युद्धबंदियों का आदान-प्रदान किया जाएगा। राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे।
भारत पर संभावित प्रभाव
यदि पाकिस्तान ताशकंद समझौते से निकलता है, तो भारत पर इसके कई प्रभाव हो सकते हैं। समझौते में एलओसी को युद्ध-पूर्व स्थिति में बनाए रखने की बात थी। इसके हटने से सीमा पर तनाव बढ़ सकता है। यह कदम दोनों देशों के बीच पहले से ही खराब रिश्तों को और बिगाड़ सकता है। पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर और जोर-शोर से उठा सकता है। हालांकि, भारत हमेशा से इसे द्विपक्षीय मुद्दा बताता रहा है। भारत इस कदम को समझौते का उल्लंघन मानेगा और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए स्वतंत्र होगा।


