प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति अब खत्म हो गई है, जिससे सर्दियों तक तटस्थ चरण रहने की संभावना है। इसे भारत में मानसून के लिए अच्छा माना जा रहा है, जिससे सूखे और अत्यधिक बारिश की आशंका भी कम हो सकती है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे मानसून का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो सकता है। अमेरिकी सरकारी एजेंसियों ने इसकी घोषणा की। ला नीना को आमतौर पर भारत में अच्छी मानसून बारिश के लिए अनुकूल स्थिति वाला माना जाता है। ला नीना से मौसम में सूखे या अधिक बारिश की संभावना कम हो जाती है, लेकिन इससे मानसून का पूर्वानुमान मुश्किल हो सकता है।
क्या रह सकती है मौसम की स्थिति?
प्रशांत महासागर के साथ-साथ हिंद महासागर में सतह का तापमान भारत के मानसून में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। महासागर का ‘सकारात्मक’ चरण जब पश्चिमी हिंद महासागर का पानी पूर्व की तुलना में गर्म होता है और आम तौर पर बारिश को बढ़ावा देता है। वहीं प्रशांत क्षेत्र के लिए अमेरिका के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र ने कहा कि 50 प्रतिशत से अधिक संभावना है कि सितंबर तक तटस्थ स्थितियां बनी रहेंगी। इसने कहा कि वर्ष के अंत तक इसके बने रहने की संभावना ला नीना या अल नीनो की तुलना में भी अधिक है।
12 साल में पहली बार होगा
अगर यह पूर्वानुमान सही साबित होता है तो 12 साल में यह पहली बार होगा कि मानसून अवधि या उसके तुरंत पहले या बाद के महीनों में अल नीनो या ला नीना की मौजूदगी नहीं होगी। प्रशांत महासागर की ये दो विपरीत स्थितियां बड़े पैमाने पर मौसम की विशेषताओं में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं जो यह निर्धारित करती हैं कि जून-सितंबर की अवधि में भारत में कितनी बारिश होगी।