13 दिसंबर 2001, भारतीय इतिहास का वह काला दिन है जब देश के लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर, भारतीय संसद भवन पर लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। यह हमला देश की संप्रभुता और सुरक्षा को सीधी चुनौती थी, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया था।
हमले का घटनाक्रम
हमला सुबह लगभग 11:40 बजे हुआ, जब शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस समय, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की कार्यवाही थोड़ी देर पहले स्थगित हुई थी।
- आतंकवादियों का प्रवेश: पाँच आतंकवादी एक सफेद एम्बेसडर कार में आए। उन्होंने गृह मंत्रालय और संसद का फर्जी स्टिकर लगा रखा था, जिससे वे आसानी से परिसर में प्रवेश कर गए।
- सुरक्षाकर्मियों की सतर्कता: जैसे ही आतंकवादी संसद भवन के गेट नंबर 11 के पास पहुंचे, एक दिल्ली पुलिसकर्मी जगदीश प्रसाद यादव को उनकी कार पर शक हुआ। जब यादव ने कार की जाँच शुरू की, तो आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। यह सतर्कता ही थी जिसके कारण वे मुख्य भवन के अंदर घुसने में विफल रहे।
- गोलीबारी: इसके बाद परिसर के भीतर लगभग 45 मिनट तक भीषण गोलीबारी चली। आतंकवादियों का मुख्य उद्देश्य संसद सदस्यों (MPs) और मंत्रियों को बंधक बनाना या उन्हें मारना था। उस समय परिसर में तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और कई अन्य सांसद और मंत्री मौजूद थे।
- वीरगति: भारतीय सुरक्षा बलों ने अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया। दिल्ली पुलिस के जवान, सीआरपीएफ (CRPF) के कर्मी और संसद सुरक्षा सेवा के कर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर आतंकवादियों का मुकाबला किया।
शहीद और क्षति
इस हमले में कुल नौ लोग शहीद हुए, जिन्होंने अपनी बहादुरी से सैकड़ों सांसदों की जान बचाई:
- दिल्ली पुलिस के पाँच जवान।
- केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) की एक महिला जवान।
- संसद सुरक्षा सेवा के दो गार्ड।
- एक माली।
सभी पाँच हमलावर आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया।
परिणाम और प्रभाव
- वैश्विक समुदाय ने इस हमले की निंदा की। भारत ने इस घटना के पीछे पाकिस्तान से संचालित आतंकी समूहों की संलिप्तता का प्रमाण दिया।
- हमले के तुरंत बाद, भारत ने अपनी पश्चिमी सीमा पर सैनिकों की भारी तैनाती की। इसे ऑपरेशन पराक्रम नाम दिया गया। इसने भारत-पाक सीमा पर एक बड़ा सैन्य गतिरोध (Military Standoff) पैदा कर दिया, जो लगभग दस महीने तक चला।
- इस हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को दोषी ठहराया गया और 9 फरवरी 2013 को उसे फाँसी दी गई।
यह हमला भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा थी, जिसमें देश की सुरक्षा प्रणाली ने अपनी बहादुरी साबित की। आज 13 दिसंबर को हर साल, हम उन शहीदों को याद करते हैं जिन्होंने राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।


