Friday, July 5, 2024
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तालिबान बन गया भारत का दोस्त.. जानें कैसे पाकिस्तान बना कट्टर दुश्मन

पाकिस्तान और अफगानिस्तान कभी दो जिस्म एक जान की तरह थे। पाकिस्तान की सरकार और तालिबान सरकार में ऐसी कैमिस्ट्री थी कि दोनों देश एक दूसरे को भाईजान मानते थे। यही वजह है कि जब कश्मीर की बात होती थी तो तालिबान का रुख भी पाकिस्तान की तरह होता था। अटल जी की सरकार में जब प्लैन हाईजैक हुआ था तो आतंकियों ने उसे काबुल में उतारा था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों और तालिबान के संबंध कितने गहरे थे। बहरहाल 9/11 के बाद हालात बदले और अमेरिका ने जंग का ऐलान कर दिया। तब अमेरिकी डॉलर के लालच में पाकिस्तान ने अमेरिका का साथ दिया और अपनी सरजमीं से तालिबान लड़ाकों पर हमले कराए। हालांकि खूंखार आतंकी ओसामा लादेन पाकिस्तान के ऐबटाबाद में मिला, जिसे अमेरिका ने ढेर कर दिया। बहरहाल 2021 तक अमेरिका ने अफगानिस्तान पर अपना शिकंजा कसे रखा। जब 2021 में अमेरिकी सेना निकलने लगी तो तालिबान फिर काबिज हो गया। तब पाकिस्तान की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे लगा कि अब भारत के खिलाफ अफगानिस्तान का साथ मिलेगा। साथ अफगानिस्तान में भारत के निवेश किए गए अरबों डॉलर डूब जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अब अफगानिस्तान पाकिस्तान से ज्यादा भारत का करीबी है या यूं कहें कि दोस्त है।

ऐसे मिले दिल से दिल

2021 में तालिबान के काबिज होते ही भारत ने कड़ा रुख अपनाया और अपना दूतावास तक बंद कर दिया। तब पाकिस्तान बेहद खुश हुआ। ऐसे में भारत ने रणनीति बदली और दूतावास फिर से खोलकर तालिबान सरकार से सीमित संपर्क बनाए रखा और अपनी तकनीकी टीम तैनात कर दी। एक तरफ भारत अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भेज रहा था। अनाज, दवा और जरूरत के सामान की खेप के साथ 24 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद अफगानिस्तान तक पहुंची। वहीं पाकिस्तान मानवीय सहायता अफगानिस्तान तक पहुंचाने में रोड़े अटका रहा था। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों को सहायता भी नहीं दी और उनसे रुपए भी ऐंठे। शरणार्थियों को अफगान सीमा में धकेले जाने से तालिबान नाराज हो गया।

पाकिस्तान ने किए हवाई हमले तो चिढ़ा तालिबान

आतंकी हमलों का बहाना बनाकर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर बम बरसाए और निर्दोषों की जान ली। इससे तालिबान खफा हो गया और दिनोंदिन संबंध बिगड़ते गए। वहीं भारत ने अपने निवेश को जारी रखा और अफगानिस्तान के पुनर्विकास में योगदान जारी रखा। इस कूटनीति से अफगानिस्तान भारत का दोस्त बन गया। ईरान के चाबहार बंदरगाह को लीज पर लेकर भारत ने पाकिस्तान और चीन को काउंटर किया तो अफगानिस्तान ने भारत का समर्थक बनकर परियोजना में शामिल होकर इसका स्वागत किया और पाकिस्तान को आंखों दिखाईं। तालिबान ने यह भी कहा कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है। यह एक तरह से भारत के रुख का ही समर्थन है।

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