Friday, July 5, 2024
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25 साल से मप्र ने नहीं छोड़ा भाजपा का साथ.. धीरे-धीरे कांग्रेस का हुआ सूपड़ा साफ

आजादी के बाद भले ही मप्र ने कांग्रेस का साथ दिया हो, लेकिन धीरे-धीरे यहां जनसंघ और भाजपा की जड़ें मजबूत होती गईं। पिछले 25 सालों में मप्र ने भाजपा का ही साथ दिया है। अब देश का दिल यानि कि मध्यप्रदेश लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। भाजपा और कांग्रेस ने मिशन 2024 की पूरी तैयारियां कर रखी हैं, लेकिन पिछले चुनावों की बात करें तो भाजपा का पलड़ा भारी नजर आता है। वहीं कांग्रेस इस प्रयास में है कि वह कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार जिताकर भाजपा को चुनौती दे पाए। हाल ही में कमलनाथ ने भी कहा था कि कांग्रेस करीब 13 सीटों पर जीतेगी। बहरहाल आपको पिछले चुनावों के वे आंकड़ेे दिखाते हैं, जिससे तस्वीर साफ हो सके कि कैसे धीरे-धीरे कांग्रेस ने मप्र की जमीन खोई और भाजपा ने मजबूती से अब क्लीन स्वीन का मन बना लिया है।
अटल जी के समय मिला जनसमर्थन
बात करें 1999 के लोकसभा चुनाव की तो तब अविभाजित मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ से भाजपा को 29 तो कांग्रेस को 11 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 2004 के लोकसभा चुनाव की तो उन चुनावों में कांग्रेस ने केंद्र में एनडीए को हराकर गठबंधन की सरकार बनाई थी। उस समय भी भाजपा को यहां से 25 सीटें मिली थीं, तो कांग्रेस को 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इससे पहले 2003 में मप्र की सत्ता में भाजपा की वापसी हुई थी।
कांग्रेस ने की थी संतोषजनक वापसी
अब नजर डालते हैं 2009 के लोकसभा चुनाव पर तो यूपीए ने केंद्र में दोबारा वापसी की, तो इसका असर मध्यप्रदेश पर भी पड़ा। उस समय भाजपा को 16 सीटें मिलीं तो कांग्रेस ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की। एक सीट बसपा के खाते में गई।
दो बार दिखी प्रचंड मोदी लहर
अब बात करते हैं 2014 के लोकसभा चुनाव की तो उस समय मोदी लहर थी। इस लहर का कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ा। तब कांग्रेस को दो सीटें नसीब हुईं। वह भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में कांग्रेस को जीत मिली। उस समय भाजपा ने पहली बार 27 सीटें जीतकर इतिहास रचा था। अब नजर डालते हैं 2019 के विधानसभा चुनाव पर, तो इस चुनाव में भी कांग्रेस की दुर्गति ही हुई। ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट से चुनाव हार गए। कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ भी कम अंतर से जीत दर्ज कर पाए। इस तरह भाजपा ने 28 सीटें जीत लीं तो कांग्रेस को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। अब भाजपा की नजर मप्र से क्लीन करने पर जमी हुई है। देखना होगा कि क्या भाजपा ऐसा कर पाती है, या कांग्रेस यहां से अपनी लाज बचा पाती है।

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