Tuesday, July 2, 2024
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इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को दिया था कच्चाथीवू द्वीप.. 50 साल बाद गर्माया मुद्दा

तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चाथीवू द्वीप आज पूरे दिन सुर्खियों में रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले को एक्स हैंडल पर उठाया तो गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर कांगे्रस को घेरा। दरअसल इंदिरा गांधी ने 1974 में यह द्वीप श्रीलंका के सुपुर्द कर दिया। जब पीएम मोदी मेरठ में सभा करने पहुंचे तो एक बार फिर उन्होंने जोर देकर कहा कि यह द्वीप राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था। जब देश आजाद हुआ तो यह द्वीप हमारे पास था और यह भारत का अभिन्न अंग था, लेकिन कांग्रेस ने कहा कि यह द्वीप किसी काम का नहीं और मां भारती के एक हिस्से को काटकर भारत से अलग कर दिया। दरअसल आरटीआई से यह खुलासा हुआ तो चुनावी सीजन में भाजपा को कांग्रेस पर हमलावर होने का मौका मिल गया। अब देखना होगा कि कांग्रेस इसका क्या जवाब देगी और भाजपा इस मुद्दे को कितना भुना पाएगी। आईए जानते हैं कि आखिर वे क्या परिस्थिति थीं, जिनके कारण भारत ने श्रीलंका को यह द्वीप दे दिया।

भारतीय तट से करीब 20 किमी दूर है द्वीप

तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई की ओर से आरटीआई लगाई थी। इसके जवाब में मिले दस्तावेजों से पता चला कि यह द्वीप ज्वालामुखी विस्फोट से बना था और भारतीय तट से करीब 20 किमी दूर है। इसका आकार 1.9 वर्ग किलोमीटर है। दरअसल आजादी के बाद से श्रीलंका तब सीलोन इस द्वीप पर लगातार दावा ठोकता रहा। यह मुद्दा 10 मई 1961 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय उठा था। तब नेहरू ने कहा था कि मैं इस द्वीप पर दावे को छोडऩे में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाऊंगा। मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता। बहरहाल तब मामला रफा-दफा हो गया। कोलंबो इस पर लगातार दावा ठोकता रहा। जब इंदिरा गांधी सत्ता में आईं तो 1968 में इस पर गुप्त समझौते की बात आई। संसद में इसका विरोध हुआ। इसके बाद 1974 में भारत ने यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया।

रामनाड के राजा के अधिपत्य में था द्वीप

ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस द्वीप का जमींदारी अधिकार राामनाथपुरम के राजा को दिया था। 1875 से 1948 तक यह द्वीप मद्रास राज्य में शामिल था। इस बीच श्रीलंका ने इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाया और कई भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में भारत को श्रीलंका से रिश्ते बिगडऩे का खतरा था। ऐसे में इंदिरा गांधी की सरकार ने श्रीलंका को यह द्वीप सौंप दिया, जबकि श्रीलंका इस पर अधिपत्य के कोई भी दस्तावेज सौंपने में सफल नहीं रहा। बहरहाल तब हुआ यह समझौता और द्वीप सौंपने का निर्णय अब सवालों के घेरे में है।

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