जनप्रतिनिधि कानून और सुप्रीम कोर्ट का वो ऐतिहासिक फैसला,जाने कैसे छिन गई राहुल गाँधी की सांसदी ?
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की आखिरकार संसदी छीन ही गई। चार साल पुराने मानहानि के एक मामले में गुरुवार को सूरत कोर्ट ने राहुल गाँधी को 2 साल की सजा सुनाई थी। इस सजा के ऐलान के बाद से ही राहुल गाँधी की संसद सदस्य्ता खतरे में आ गई थी। वहीं आज शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने राहुल गाँधी की सदस्य्ता रद्द करने का नोटिस जारी कर दिया।
राहुल गाँधी की सदस्य्ता को लेकर शुक्रवार को लोकसभा ने नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया कि “सी.सी./18712/2019 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सूरत की अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के परिणामस्वरूप, केरल के वायनाड संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा सदस्य राहुल गांधी अपनी सजा की तारीख से लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य हो गए हैं।
क्या कहता है जनप्रतिनिधि कानून
बता दें भारत में 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक किसी भी जनप्रतिनिधि को 2 या 2 साल से अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता तत्काल रद्द हो सकती है। राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्य्ता भी इसी कानून के तहत रद्द की गई है। हालाँकि यह कानून हमेशा से ही ऐसा नहीं था। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले के बाद इस कानून में बदलाव आया था।
दरअसल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 10 जुलाई 2013 के एक फैसले ने पुराने कानून की स्तिथि को बदल दिया था। पहले कानून में यह प्रावधान था कि दोषी सांसदों, विधायकों, एमएलसी को अपनी सीटों को बनाए रखने की तबतक की अनुमति थी जबतक की वे भारत के निचले, राज्य और सर्वोच्च न्यायालय में सभी न्यायिक उपायों को समाप्त नहीं कर देते हैं.
हालाँकि 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि ‘कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी जिसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल की जेल दी जाती है, तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी फैसले में 10 जुलाई 2013 को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को रद्द कर दिया था जिसने निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनकी सजा की अपील करने के लिए तीन महीने की अनुमति दी थी.