कितना भरोसे के लायक है तालिबान, क्या बन रहा है भारत का रुख..जानिए इस रिपोर्ट में
तालिबान… जिसकी सरपरस्ती में आतंकी पनाह पाते पाते हैं.. वह तालिबान जिस ने अफगानिस्तान पर हथियारों के बल पर कब्जा जमाया उस तालिबान को मुबारकबाद देने के लिए अलकायदा जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन सामने आ रहें हैं । आपस में खुशियां मनाई जा रही तो इस बीच भारत के साथ तालिबान ने चर्चा करना भी शुरू कर दी है। विश्व की अब भारत की ओर नजर है, नजर इसलिए कि वह तालिबान ही है जिसकी सरपरस्ती में आतंकवादी गतिविधियां पनपती रही हैं।
यह जगजाहिर है कि अल कायदा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का जन्मदाता पाकिस्तान है । और पाकिस्तान तालिबान को खुला समर्थन दे रहा है लेकिन इन हालातों के बीच भारत पशोपेश में है । दोहा में भारतीय राजदूत ने तालिबानी प्रतिनिधि से बातचीत की लेकिन भारत की ओर से खुलकर कोई भी बयान सामने नहीं आया बस इस तरह से निष्कर्ष निकाला गया की अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की चिंता भारत को सताई जा रही है । लेकिन सवाल यह है कि क्या तालिबान के साथ आने वाले दिनों में भी वार्ता का यह क्रम भारत की ओर से चलेगा या फिर यहीं पर थम कर रह जाएगा,।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार तालिबान नहीं है भरोसे के लायक
विदेश नीति के जानकार और रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो तालिबान जरूर अपने आपको अभी बदला-बदला बताने की कोशिश कर रहा है लेकिन उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। जिस तरह से पाकिस्तान के साथ कई बार सीज फायर का उल्लंघन न करने की बातें अक्सर आर्मी के बीच होती है लेकिन पाकिस्तान की ओर से हर दम सीज फायर का उल्लंघन कर दिया जाता है। ठीक उसी तरह से तालिबान पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता तालिबान ने जैसे कि अफगानिस्तान में दस्तक दी उसके बाद से ही आतंकी संगठन खुश हो गए हैं अलकायदा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन अब कश्मीर की आजादी के नारे भी लगाने लगे हैं। ऐसे में भारत का रुख साफ है कि किसी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियां तालिबान की भारत के विरुद्ध पनपनी नहीं चाहिए ।
यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान की सरपरस्ती में ही जेश ए मोहम्मद और अलकायदा जैसे संगठन वहीं से जन्मे और वही से आतंकी गतिविधियों की ओर निकले । भारत में कई आतंकवादी गतिविधियों में उनका सीधा सीधा नाम आया है और उनके तालिबान से संबंध बरकरार रहे। लिहाजा इस बार तमाम बातों को देखते हुए भारत का रुख कैसा तालिबान के विरुद्ध रहेगा उसका इंतजार सभी को है।
रक्षा विशेषज्ञ का मानना है कि आर्थिक सुरक्षा के अनुरूप आगे बढ़ना चाहिए लेकिन हमारे व्यापारिक संबंध अफगानिस्तान के साथ थे और अफगानिस्तान में उस वक्त हम ऐसे कई प्रोजेक्ट बना रहे थे जिससे दोनों सरकारों के बीच एक बहुत ही अच्छा समन्वय स्थापित था । भारत तो अफगानिस्तान की संसद तक का भी निर्माण कर रहा था लेकिन इस दौरान जिस तरह से हथियारों के दम पर तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया उसके बाद लोकतंत्र की उम्मीद तो अफगानिस्तान में अब नहीं की जा सकती ।
लिहाजा अब भारत की विदेश नीति तालिबान के विरुद्ध कैसी होगी इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने कतर की राजधानी दोहा में जो बातचीत तालिबान के तथाकथित राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्वास से की ये बातचीत शुरुआत की है फिलहाल भारत का रुख अभी भी स्पष्ट नहीं है इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
क्या हो सकता है भारत का अगला कदम
तालिबान से कोई भी देश जो लोकतंत्र की गरिमा को बरकरार रखने में भरोसा रखता है सीधे संबंध नहीं रख सकता। तालिबान पर भरोसा सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता ऐसे में भारत के रुख पर सब की निगाहें टिकी हुई है। लेकिन भारत अभी किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा है जाहिर सी बात है भारत भी अन्य देशों की ओर देख रहा है ।
हालांकि अब अफगानिस्तान जो कि तालिबान के कब्जे में है वहां के व्यापारिक संबंध जरूर बिगड़ते जा रहे हैं लेकिन उसकी परवाह भारत को नहीं है। भारत नागरिकों की सुरक्षा की चिंता में जुटा हुआ है । लिहाजा भारत का अगला कदम क्या होगा इसका इंतजार सभी को हैं । एक मजबूत राष्ट्र की पहचान भी ऐसी होती है कि वे सभी समीकरणों को देखते हुए आगे बढ़े लिहाजा ऐसे में विश्व पटल पर भारत की ओर सभी की निगाहें है । वैसे भी भारत वर्तमान दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में आतंकवादी गतिविधियों को पूरी तरह से खत्म करने की ओर बढ़ रहा है लिहाजा ऐसे में भारत की रणनीति पर ही तालिबान का भविष्य भी नजर आएगा यह पूरी तरह से तय है ।